" चलो अन्याय करें "
अन्याय की अति हो गई हे प्रभु कब आपका कल्कि अवतार होगा अन्याय की अति ऐसे कि देश की एक सर्वोच्च संवैधानिक संस्था मे निर्णय हेतु एक विवाद "सहारा सेवी" जाता है जिसमे साल 2010 के आस पास सेवी के कहने पर यह सर्वोच्च संवैधानिक संस्था सुनवाई करते हुए एकतरफा आदेश देती है कि सहारा इंडिया परिवार ने गलत तरीके से देश की जनता से पैसा लिया है जो कि 25000 करोड़ है इसे अविलंब देश की कंपनियों को रेगुलेट करने वाली संस्था सेवी के बैंक अकाउंट मे जमा करे ताकि सेवी निवेशकों को पैसा वापस करे और सहारा इंडिया परिवार को मजबूरन अपनी देश विदेश की संपतियों को बेंचकर सेवी के पास पैसा जमा करना पड़ता है ताकि निवेशकों का पैसा सेवी वापस करे लेकिन अभी दस साल (एक दशक ) बीत जाने के बाद भी सेवी द्वारा 25000 करोड़ मे से मात्र 200 करोड़ से भी कम पैसा निवेशकों का पैसा वापस कर पायी है क्या इतना बड़ा काम है कि सेवी जैसी संस्था को निवेशकों का पैसा वापस करने मे एक दशक से भी ज्यादा का समय लग जाए सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब इसी संवैधानिक संस्था के द्वारा आदेश दिया जाता है कि सुब्रत राय सहारा स्वयं उसके समक्ष पेश हो और सुब्रत राय सहारा उसके समक्ष पेश होने मे समर्थ नहीं होते तब उन्हे संवैधानिक संस्था के आदेश की अवहेलना करने के जुर्म मे दो साल के लिए जेल भेज दिया जाता है उसी संवैधानिक संस्था को अब यह आदेशों की अवहेलना नहीं लगती कि देश के लाखों करोडों भोली भाली जनता की गाढ़ी कमाई का 25000 करोड़ रुपया जो की सेवी के पास सर्वोच्च संवैधानिक संस्था के आदेश से निवेशकों को भुगतान करने हेतु जमा हो चुका है निवेशकों को दस साल (एक दशक ) का समय हो जाने के बाद भी वापस नहीं किया जा रहा है | अब जब निवेशकों का पैसा स्वयं सर्वोच्च संवैधानिक संस्था के आदेश से उसके अनुसार जमा हो चुका है तब उस पैसे को निवेशकों को वापस क्यों नहीं किया जा रहा है इसका निर्णय कौन करेगा | जब देश मे एक आतंकवादी को न्याय देने के लिए यही संवैधानिक संस्था रात दिन कार्य करके न्याय देना चाहती है तब क्या स्वयं देश के लाखों करोडों भोली भाली जनता के हित के लिए यही संवैधानिक संस्था रात दिन कार्य करके न्याय नही दे सकती इस विवाद मे जहां न्याय समय से नहीं मिलने के कारण सहारा इंडिया परिवार का पैराबँकिंग डिवीजन जो कि देश की दो लाख करोड़ की व्यावसायिक संस्था थी लगभग खत्म होने के कगार पर है वही उसके कर्मचारियों एवं निवेशकों तथा उनके परिवार के सदस्यों की हालत बहुत बुरी तरह से खराब हो चुकी है उनके परिवार मे पता नहीं कितने लोग की शिक्षा प्रभावित हुई पता नहीं कितने लोगों की चिकित्सा सुविधा के अभाव मे मृत्यु हो गई तो पता नहीं कितने लोगों की रोजी रोटी चली गई पता नहीं कितने लोग आत्महत्या कर चुके है और पता नहीं कितने लोग आत्महत्या करेंगे | मेरे इस विचार से आप सभी सहमत अवश्य होंगे | इन संवेदनहीं उच्च संस्थाओं के बारे मे क्या कहे मुझे तो आजतक कोई नहीं मिला जो कहता हो कि न्याय भी है और समय से भी है सभी लोग यही कहते है कि "देर है अंधेर नहीं " देर क्यों भाई देर करने के लिए वेतन लेते हो ,ऐसी देर की नया व्यवस्था जिसमे लाखों करोड़ो लोगों कि शिक्षा खतरे मे हो, जान खतरे मे हो क्या उसको बदलने की जरूरत नहीं है ?"देर है अंधेर नहीं " कहावत बहुत सालों पहले की है यह बहुत ही गलत है | मनुष्य मर जाए उसके बाद उसको न्याय मिले उसका क्या मतलब है | हे न्याय करने वालों अपने अंतर्मन से पूंछों क्या इस तरह का न्याय अन्यान नहीं है एक दिन सभी को ईश्वर के पास जाना है और उसको ईश्वर के समक्ष इन सभी सवालों का जवाब देना ही होगा कि आपने अपने पद के अनुरूप कार्य क्यों नहीं किया अपने अधिकारों का उचित उपयोग क्यों नहीं किया न्याय को देर से देने का अन्याय क्यों किया जब अपने कार्यों का निर्वहन सही से नहीं कर पा रहे थे तब आपने क्यों अपने पद का त्याग नहीं किया |क्यों न आपको कढ़ाई के उबलते तेल मे एक दशक तक रखा जाए | "मिलेगी सजा अवश्य मलेगी" कर लो अन्याय ईश्वर सब कुछ देख रहा है अन्याय करने वालों आज जिस दर्द एवं परेशानी से डर कर अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर रहे हो ईश्वर के पास जाकर वही दर्द 100 गुना होकर मिलेगा ध्यान रखिएगा |ईश्वर से यही कामना है कि देश के सभी इस तरह उच्च पदों पर बैठे लोगों को शक्ति और सद्बुद्धि प्रदान करे की वह सभी अपने कर्तव्यों का निर्वहन न्याय पूर्वक कर सके |क्या जिस विवाद मे देश के लाखों करोड़ो लोगों का हित का सवाल हो उस विवाद की सुनवाई एक आतंकवादी के न्याय की सुनवायी से अधिक आवश्यक नहीं है | पता नहीं कितने साल और लगेंगे तब तक तो कितने ही परिवारों के लोग तिल तिल करके मरते रहेंगे | किसी को देश एवं देश की जनता के हित से मतलब नहीं है सबको अपनी नौकरी एवं अपने परिवार से मतलब है |
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