Bulk Deal क्या है?
Bulk deal तब होती है जब एक ही ट्रेडिंग दिन में 0.5% या उससे अधिक शेयर किसी एक निवेशक द्वारा खरीदे या बेचे जाते हैं। यह आमतौर पर बड़े संस्थागत निवेशकों या हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल्स द्वारा किया जाता है।
प्रभाव:
शेयर की मांग और आपूर्ति:
- बायिंग प्रेशर (खरीदारी का दबाव): अगर bulk deal के दौरान बड़ी मात्रा में शेयर खरीदे जाते हैं, तो शेयर की मांग बढ़ जाती है। इससे शेयर का प्राइस बढ़ने की संभावना होती है।
- सेलिंग प्रेशर (बेचने का दबाव): अगर bulk deal के दौरान बड़ी मात्रा में शेयर बेचे जाते हैं, तो शेयर की आपूर्ति बढ़ जाती है। इससे शेयर का प्राइस गिरने की संभावना होती है।
मार्केट सेंटीमेंट:
- पॉजिटिव संकेत: यदि बड़ी मात्रा में शेयर खरीदे जा रहे हैं, तो इसका मतलब हो सकता है कि बड़े निवेशक कंपनी की भविष्य की संभावनाओं को सकारात्मक मानते हैं। इससे अन्य निवेशकों का भी विश्वास बढ़ सकता है, जिससे शेयर का प्राइस बढ़ सकता है।
- नेगेटिव संकेत: अगर बड़ी मात्रा में शेयर बेचे जा रहे हैं, तो इसका मतलब हो सकता है कि बड़े निवेशक कंपनी के भविष्य के बारे में चिंतित हैं। इससे अन्य निवेशकों का भी विश्वास कम हो सकता है, जिससे शेयर का प्राइस गिर सकता है।
लिक्विडिटी:
- Bulk deal के बाद शेयर की लिक्विडिटी (लिक्विडिटी: शेयर कितनी आसानी से खरीदे या बेचे जा सकते हैं) पर असर पड़ सकता है। अधिक लिक्विडिटी वाले शेयरों में प्राइस में बहुत बड़ा बदलाव नहीं होता है, लेकिन कम लिक्विडिटी वाले शेयरों में बड़ा प्राइस स्विंग हो सकता है।
इंसाइडर ट्रेडिंग:
- कभी-कभी bulk deal में शामिल बड़े निवेशक कंपनी के बारे में ऐसी जानकारी होल्ड कर सकते हैं जो सार्वजनिक नहीं है। अगर बड़े निवेशक शेयर खरीदते हैं तो हो सकता है कि उनके पास कंपनी के सकारात्मक विकास के बारे में जानकारी हो। इससे शेयर का प्राइस बढ़ सकता है। अगर वे बेचते हैं, तो इसके विपरीत प्रभाव हो सकता है।
स्पेक्युलेशन:
- Bulk deal के बारे में खबर आने पर मार्केट में स्पेक्युलेशन (सट्टा) बढ़ सकता है। निवेशक इसे देखकर अनुमान लगाने लगते हैं कि कंपनी के साथ क्या हो सकता है, जिससे शेयर प्राइस में अस्थिरता बढ़ सकती है।
सारांश:
Bulk deal का प्रभाव शेयर प्राइस पर कई कारकों पर निर्भर करता है, जिसमें शामिल हैं डील की दिशा (खरीद या बिक्री), मात्रा, कंपनी के वित्तीय स्वास्थ्य, और मार्केट सेंटीमेंट। सामान्यतः, बड़ी खरीदारी शेयर प्राइस को बढ़ा सकती है और बड़ी बिक्री शेयर प्राइस को गिरा सकती है, लेकिन अंतिम प्रभाव परिस्थिति और संदर्भ पर निर्भर करता है।
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